गर्भावस्था के 10 से 12 सप्ताह का समय शिशु के विकास में महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान शिशु के अंग तेजी से विकसित हो रहे होते हैं, और मां के शरीर में भी कई परिवर्तन होते हैं। इसलिए, इस समय में कुछ महत्वपूर्ण परीक्षण कराना आवश्यक होता है ताकि मां और शिशु दोनों की सेहत सुनिश्चित की जा सके।
प्रारंभिक अल्ट्रासाउंड जांच
इस अवधि में प्रारंभिक अल्ट्रासाउंड जांच की जाती है। इस जांच के माध्यम से शिशु की हृदय गति, आकार, और गर्भाशय में उसकी स्थिति की जानकारी मिलती है। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि गर्भावस्था सामान्य रूप से विकसित हो रही है या नहीं।
मातृ सीरम स्क्रीनिंग टेस्ट (MSS)
10 से 13 सप्ताह के बीच मातृ सीरम स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है। इस परीक्षण से शिशु में डाउन सिंड्रोम, एडवर्ड्स सिंड्रोम जैसी गुणसूत्र संबंधी असामान्यताओं का पता लगाया जा सकता है। यह एक सरल रक्त परीक्षण है जो मां के रक्त में विशेष प्रोटीन और हार्मोन के स्तर को मापता है।
नॉन-इनवेसिव प्रेनाटल टेस्टिंग (NIPT)
यह परीक्षण मां के रक्त में मौजूद शिशु के डीएनए का विश्लेषण करता है। इससे गुणसूत्र संबंधी असामान्यताओं का पता लगाया जा सकता है। यह परीक्षण सुरक्षित होता है और गर्भावस्था के 10 सप्ताह के बाद किया जा सकता है।
कैरियोटाइपिंग या गुणसूत्र विश्लेषण
यदि पिछले परीक्षणों में कोई असामान्यता पाई जाती है, तो डॉक्टर कैरियोटाइपिंग या गुणसूत्र विश्लेषण की सलाह दे सकते हैं। इससे शिशु के गुणसूत्रों की संरचना की विस्तृत जानकारी मिलती है।
रक्तचाप और मूत्र परीक्षण
गर्भावस्था के इस चरण में मां का रक्तचाप और मूत्र परीक्षण भी महत्वपूर्ण होता है। इससे प्रीक्लेम्पसिया जैसी स्थितियों का समय रहते पता लगाया जा सकता है, जो मां और शिशु दोनों के लिए जोखिमभरा हो सकता है।
एचआईवी और हेपेटाइटिस बी परीक्षण
मां की सेहत सुनिश्चित करने के लिए एचआईवी और हेपेटाइटिस बी जैसे संक्रमणों के लिए भी परीक्षण किया जाता है। इससे शिशु को संक्रमण से बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं।
इन सभी परीक्षणों के माध्यम से गर्भावस्था के 10 से 12 सप्ताह के बीच मां और शिशु की सेहत की निगरानी की जाती है, जिससे किसी भी संभावित समस्या का समय रहते समाधान किया जा सके
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